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यें सरासर गलती की है

ये सरासर ग़लती की है,
जो आपने रौशनी की है।

लगाके दिल तुझसे सबने,
मेरी तरहा शायरी की है।

आबशार की हयात तुमने,
तुमने फिर तिश्नगी की है।

हौले से मुस्कुराकर आपने,
गुलों से फिर दुश्मनी की है।

आपने सोचा मुझको फिरसे,
इस बात ने मुझे गुदगुदी की है।

किसने आसमाँ को पानी दिया,
किसने बहारे शबनमी की है।

किसने निकाला सूरज फिरसे,
रात किसने सुरमई की है।

अपना यकी सुख़न में कहके,
'तनहा' आपने मुक़र्रमी की है।

Tariq Azeem Tanha
18/5/२०२२

# दैनिक प्रतियोगिता हेतु

# लेखनी

# लेखनी काव्य

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3 Comments

Punam verma

19-May-2022 01:13 PM

Nice

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Shrishti pandey

19-May-2022 11:09 AM

Nice

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Mchoudhary

18-May-2022 09:06 PM

💖💖

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